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पत्रकार सुरक्षा कानून के प्रति प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया का उदासीन व्यवहार जिम्मेदार

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पत्रकार सुरक्षा कानून के प्रति प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया का उदासीन व्यवहार जिम्मेदार

डॉक्टर सैयद खालिद कैस एडवोकेट 

पत्रकार , लेखक , समीक्षक।

देश की आजादी के बाद से आज दिनांक तक पत्रकारों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार सहित देश भर की प्रादेशिक सरकारों के उदासीन व्यवहार का परिणाम है कि भारत वर्ष का पत्रकार अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहा है ।आजादी के 77साल बाद भी जहां देश में महिलाओं ,पशुओं,पक्षियों की सुरक्षा के लिए कानून होना ओर पत्रकारों की सुरक्षा के लिए किसी कानून के नहीं होने का परिणाम है कि देश भर में पत्रकार उत्पीड़न की घटनाओं के मामले सामने आते रहे हैं।देश में एक दो प्रादेशिक सरकारों के अलावा कोई भी सरकार पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सजग नहीं है। केंद्र सरकार ने 2017में एक गाइडलाइन बनाकर इतिश्री कर ली और 2017की गृह मंत्रालय भारत सरकार द्वारा बनाई गई गाइडलाइन पर आज तक अमल नहीं होने पर भी सरकार को सरोकार नहीं है। 

गौरतलब हो कि पत्रकार सुरक्षा एवं कल्याण के लिए प्रतिबद्ध अखिल भारतीय संगठन प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स द्वारा प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया को सूचना का अधिकार अधिनियम में आवेदन प्रसूत कर यह जानकारी मांगी थी कि कौंसिल द्वारा पत्रकार सुरक्षा कानून के संबंध में क्या कदम उठाया।उसके संबंध में कौंसिल की जनसूचना अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी अनुसार प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने 2015 में पत्रकारों की सुरक्षा पर एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें उसने केंद्र सरकार को भारत में पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई प्रमुख मुद्दों को शामिल करते हुए कानून बनाने की सिफारिश की थी, जिसमें पत्रकारों पर हमलों और धमकी का अपराधीकरण, पत्रकारों पर हमलों के मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया या अदालत की निगरानी में त्वरित जांच के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन, पत्रकार हत्या के मामलों को तीन महीने की जांच समयसीमा के साथ राष्ट्रीय स्तर की जांच एजेंसियों को स्वचालित रूप से संदर्भित करना, किसी पत्रकार के खिलाफ मामला दर्ज करने से पहले पुलिस महानिदेशक से मंजूरी प्राप्त करना, मारे गए पत्रकारों और गंभीर रूप से घायल पत्रकारों के परिवारों को वित्तीय मुआवजा प्रदान करना, राज्य सरकार द्वारा घायल पत्रकारों के सभी चिकित्सा खर्चों को वहन करना शामिल है। इसने पत्रकारों की बेहतरी और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकारों को कई पहल करने की भी सिफारिश की। इसमें राज्य सरकारों से पत्रकारों पर हमलों या उनके खिलाफ मामलों की जांच की निगरानी के लिए पत्रकार संगठनों के प्रतिनिधियों और पीसीआई के एक नामित व्यक्ति से मिलकर उच्चाधिकार प्राप्त समितियां स्थापित करने का आग्रह करना शामिल है। रिपोर्ट में आगे एक राष्ट्रीय स्तर की उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन का उल्लेख किया गया है, जिसमें एक अतिरिक्त सचिव, एक पीसीआई नामित व्यक्ति तथा राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त पत्रकार संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।


लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया द्वारा केंद्र सरकार को भेजी गई 2015की रिपोर्ट पर आज 10साल बाद तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं होना सरकार की उदासीनता को उजागर करता है। 

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