25 जून 1975 की बीती रात ने आज के भोर को दहला दिया था।
मेरा निवास मैन रोड पर है गढीमलहरा मै रात्रि महाराजपुर से निकले पुलिस डग्गे मै से जिन्दाबाद मुर्दाबाद तानाशाही नहीं चलेगी के नारे आ रहे थे कुछ समझ नही आया माजरा क्या है। मै तब गढीमलहरा मै पेपर बाटने का काम करता था विधाध्यन के साथ, सुबह छतरपुर से आने वाली पहली बस से पेपर उठाने गया बस मै पेपर नहीं थे ड्राइवर ने बताया आज कहीं के पेपर नहीं रखे गए, उस डी डी एम की छतरपुर मटौध बस से महाराजपुर लौडी चन्दला बारीगढ तक के पेपर जाते थे। पेपर पढने आये शोकीन रात मै महाराजपुर से डा नर्मदा रामदयाल पटैरिया जी, दादा मातादीन चौरसिया जी सहित कई लोगों के गिरफ्तार करने की चर्चा कर रहे थे।
मैंने 8 बजे के समाचार सुने पिताजी नियमित सुनते थे रात नो सुबह आठ के समाचार मै देश मै आपातकाल लगा दिया गया है कुछ देश मै अराजकता फैलाने वाले नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है राष्ट्पति ने अध्यादेश जारी कर दिया है । पहले देखा सुना नहीं था इसलिए मै स्वयं तथा जनता समझ नहीं पा रही थी पर गिरफ्तारी से तनाव मै थी। नगर के काग्रेंस के बड़े नेता अक्सर पेपर पढने आते थे, मैंने बताया पेपर नहीं आये तब बोले कि इमरजेंसी इन्दिरा गान्धी जी ने लगा दी है? मैने पुछा यह क्या है, उनको ज्यादा पता नहीं था बोले नेता आन्दोलन करते थे सरकार को गिराने मै लगे थे अब नहीं कर पायेगें जो भी करेगा जेल जाऐगा।
मै स्कूल गया शिक्षक चुप सहमे थे छतरपुर जिले के सब विरोधी नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वाले गिरफ्तार कर लिए गए तथा कुछ फरार हो गये है। गढीमलहरा मै श्री अशोक वकील साहब को गढीमलहरा महाराजपुर पुलिस तलाश रही थी। महाराजपुर के रमेश पत्रकार जो पान्चजन्य जनसघ का मुखपत्र भगाते बाटते वह भी गिरफ्तार कर लिए गए गढीमलहरा मै बाटने मुझे दे जाते थे 15 प्रतिशत कमीशन मिलता था। चौकी मेरे मकान के लगभग सामने थी। श्री हरप्रसाद मिश्रा काग्रेंस के जिले के नेताओं मै थे श्री मती विधाता चतुर्वेदी के खास थे हमारी नानी को बहिन मानते थे देर साम घर आये तब तक पिताजी बडामलहरा मै व्याख्याता थे आ गए मिश्रा जी ने कहा जितने पान्चजन्य राष्ट्धर्म सघ के समाचार पत्र है उनको कुऐं मै डाल दो पुलिस आने वाली है एस पी ने बताया है आपके घर। हमारे घर पर पिताजी की मित्रता के कारण गढीमलहरा मै सघ जनसघ के नेता हमारे घर पास बस स्टैंड बजार होने से बैठते थे। तब गढीमलहरा ग्राम पंचायत सरपंच बृज विहारी बैध काग्रेंस के नेता थे हमारी दुकान मै किराये से दवाखाना खोले थे, उनने मदद की तथा सब बोरी मै बाध कुए मै डाल दिए पुलिस आई तो उनने कहा लडका है पहले बाटता था अब 6 माह से नहीं बाटता और मै तो ठीक पिताजी शासकीय सेवक थे बच गऐ।
समय निकलता गया जिस पर उगली काग्रेंस नेता कर देते थे वह जेल चला जाता था डी आई आर मै सबसे ज्यादा गिरफ्तारी महाराजपुर छतरपुर से हुई गढीमलहरा मै तब लखन आचार्य तथा जानकी आचार्य शिशु मन्दिर के थे पर उनके ससुर काग्रेंस नेता थे वच गए बाद मै उनने शिशु मन्दिर छोड़ सजयगाधी स्कूल खोल लिया गढीमलहरा से कोई गिरफ्तार नहीं हुआ श्री अशोक वकील साहब फरार रहे।
देश मै बीस सूत्रीय कार्यक्रम लागू हो गया साथ सॅजयगाधी के 5 सूत्र जिसमें वृक्षारोपण तथा नशबंदी अभियान प्रमुख था। कोई सरकार के खिलाफ बोल नहीं सकता था रेडियो समाचार , समाचार पत्र बेजान तथा नीरस थे सरकार का गुणगान करते थे बी वी सी से समाचार मिलते थे । जिन निर्दोष नेताओं को गिरफ्तार किया था उनके परिवार मै भोजन के लाले थे, गाव के लोग रिश्तेदार चोरी से रसद सप्ताह मै देते थे।
जब आपातकाल लगा उसके कारण जानना जरूरी है, लेखकों मुताबिक जिसके दो पक्ष है। उस समय 9171 भारत पाक युद्ध के बाद तथा बांग्लादेश विभाजन से लाखों शरणार्थियों को सरकार मुफ्त खिला रही थी युद्धों से आर्थिक हालत कमजोर होना सामान्य बात है साथ शरणार्थी बोझ, जिससे महगाई चरम पर थी। कम्युनिस्ट पार्टी तथा श्री जयप्रकाश नारायण महगाई के कारण तथा सरकार हटाने के लिए देश मै समग्र क्रांति आन्दोलन चला रहे थे जिसमें युवा तेजी से जुड़ रहे थे। जार्ज फरनान्डिस के नेतृत्व मै रेल कर्मचारी यूनियन जार्ज फरनान्डिस राम बन्द हो रही थी, उनने पटरी के नीचे डायनामाइट रख पटरी उड़ा दी थी, सरकार पर दबाव बढ़ रहा था। इन्दिरा गान्धी की लोकप्रियता युद्ध के बाद विपक्ष तथा जनता मैं गिरती जा रहीं थी जनता विरोध मै मुखर हो रही थी काग्रेंस मै भी आपसी फूट पहले से थी। उसी समय 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट मै जो राजनारायण ने इलैक्शन पिटीशन डाल रखी थी उसमें फैसला आ गया जस्टिस मिश्रा ने श्री मती इन्दिरा गान्धी का चुनाव निरस्त कर प्रधानमंत्री का कार्य नहीं कर सकती निर्णय दिया,जिससे विरोधी आन्दोलन और तेज हो गया। लेखकों मुताबिक इन्दिरा गान्धी ने सुप्रीम कोर्ट मै हाईकोर्ट आदेश पर स्थगन चाहा जो 23 जून को कोर्ट ने निरस्त कर दिया। इन्दिरा गान्धी जी के पास एक ही विकल्प था स्तीफा देकर अपने व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना पीछे से सरकार चलाऐ, कोई ऐसा व्यक्ति जो विरोधी दल खासकर कम्युनिस्ट पार्टी का झेल पाए नहीं था उस समय, तथा सॅजयगाधी राजनीति मै हस्तक्षेप करने लगे थे उनने तथा इन्दिरा गान्धी जी खास तबके तीन दलाल चर्चित थे उन ने इमरजेंसी लगाने की सलाह दी, और इन्दिरा गान्धी ने 24- 25 जून की दरम्यान रात सत्ता मै जबरन बने रहने के लिए लोकतंत्र प्रक्रिया स्तीफा के बजाए तानाशाह बनने का रास्ता चुना तथा राष्ट्पति पर दबाव बना आपातकाल लगवा दी देश मै राष्ट्रपति शासन आपातकाल लागू हो गया। , इन्दिरा गान्धी के आपातकाल लगाने से बने भय तथा नेताओं को जेल मै डालने से जहाँ आन्दोलन नहीं हुए वहीं जमाखोर डर कर जमाखोरी बन्द करने से महगाई तथा देश की अव्यवस्था पटरी पर आई ट्रेन समय पर चलने लगी आफिस मै कर्मचारी समय पर काम करने लगे बाबू अफसर राज समाप्त हुआ राहत मिली। दूसरी ओर कांग्रेस की चण्डालचौकडी ने मनमानी करना शुरू कर दी, आवादी नियन्त्रण तथा वृक्षारोपण तबकी बड़ी जरूरत थी , पर इसके पालन मै जो तानाशाही हुई कर्मचारियों नेताओं द्वारा सजयगाधी के खास बनने के चक्कर मै उसने आपातकाल का काला अध्याय मै कारण बनी जनता पर राजस्व अधिकारियों की ज्यादती बन गई। कुवारे लडकों को जबरन नशबंदी , किसी भी सरकारी काम कराने के लिए तहसीलदार थानेदार 5 नशबंदी केश लाने की शर्त लगाने लगे जनता को भ्रष्टाचार से बड़ी समस्या नशबंदी को लोग लाना बनी चलनियां गाँव की गरीब कमजोर महिला पुरुष जिनकी शादी हाल हुई सन्तान नहीं उनकी बूढों की नवजवानों की कराने लगे कहर बन टूटा। दिल्ली मै बुलडोजर तबकी ज्यादती कह सकते लैकिन आज चौड़े सडक वह जरूरत थी, जनता आहत हुई आज अभी दिल्ली मै चले बुलडोजर जायज़ है तो वह गलत कैसे था।
आपातकाल के स्याह सफेद दोनों पक्ष थे। बेजा नशबंदी छोड़ उस समय नशबंदी न होती तो आज आवादी एक सो चालीस की जगह एक सो अस्सी करोड़ होती। यह भी सच है समाचार पत्र पर पाबंदी न होती तो तब वह समाचार छपता जब उत्तर प्रदेश के एक तागे वाले न घोड़े पर चावुक लहराते कहा था चल घोड़े इन्दिरा की चाल और उसे जेल मै डाला गया था जबकि उसने प्रशन्सा की थी पर नाम लेना गुनाह बना दिया था पुलिस ने , और समाचार छपने पर इन्दिरा गान्धी को जमीनी ज्यादती पता चलती। उस समय नेताओं ने अपने विरोधियों को जेल बिना बजय डाला था। जिसका राजनीति से लैना दैना नहीं था। आपातकाल की सबसे काला पक्ष बेजा नशबंदी तथा समाचार पर सेन्शर शिप तथा विपक्षी नेताओं विरोधी को लम्बे समय जेल मै डालना तथा न्याय पाने के लिए कानून के दरबाजे बन्द होना सफेद पक्ष जनसंख्या नियंत्रण प्रयास वृझारोपड था । आज उक्त आपातकाल के स्याह सफेद पक्ष के बीते 50 वर्ष हो गये जिनने उसकी ज्यादती भोगी अधिकान्श दुनिया से चले गए, क्योंकि जो आज 50 वर्ष के है वह उसी समय पैदा हुए जो पचपन के है उनको तब उनकी मां के पास खुशी ही दुनिया की खुशी थी जो 60 वर्ष के है उन्हें परिवार का तनाव याद होगा, उससे जो बडे है उन्हें ज्यादती याद होगी। जो आज 60 से कम आयु के है उन्हें आपातकाल की ज्यादती पर लिखी पुस्तक पढी न होगी न आपातकाल के कारण पढ़े होगें।
आज जो राजनेता है उनका आपातकाल असवैधानिक था यह कहना गलत है,क्योंकि सविधान मै आपातकाल लगाने की व्यवस्था डा अंबेडकर जी या राव जी जिसे लेखक माने उनने व्यवस्था देकर देश के दोनों सदनों ने स्वीकार किया है। आपातकाल लोकतंत्र का काला अध्याय नि सोच था विपक्ष की जबान बन्द कर जेल मै डालना लोकतंत्र नहीं है। आपातकाल को वैधानिक व्यवस्था मानें तब आपातकाल मै सबसे बड़ी गलती क्या थी , जो आपातकाल को काला अध्याय कहा वह,1- जनता को कानून के रास्ते बन्द, करना 2- बिना कारण राजनैतिक द्वैष से कानून का दुरपयोग कर विरोधी या विरोध करने वाले को जेल मै डालना
3- विचारक,वक्ता या ,मीडिया, समाचार पत्र, को अपने हित मै चलवान नेरेटिव गढना या शाम दाम दण्ड भेद से उनका मुह बन्द करना।4---, योजना के क्रियान्वन करने के लिए जनता से ज्यादती करना भले ही उनके भविष्य के लिए हो । आजके राजनेता कोई हो उक्त 4 गलती कभी न करना , अन्यथा विपक्ष नहीं जनता सत्ता से स्वयं चुनाव लड बेदखल कर देती है। मैंने 1977 का चुनाव देखा प्रचार मै गया आपको आश्चर्य नहीं लगता तब न शोशल मीडिया न ससाधन जनता पार्टी के प्रत्याशी के पास मात्र एक माह मै हलधर किसान चुनाव चिन्ह दूर गाँव जहाँ साधन नहीं वहाँ के हर मतदाता तक पहुँच गया उसने बिना जाने प्रत्याशी कौन है, इन्दिरा गान्धी को नहीं पार्टी को सत्ता से दूर कर दिया। मै चुनाव प्रचार मै गया नेताओं के पीछे बैठ श्री लक्षमी नारायण नायक प्रत्याशी थे, लोग जीप की आबाज सुन गाँव खाली कर देते थे जब पता चला चुनाव की जीप आई है तब आकार चौपाल पर भाषण नहीं आप बीती सुनाते थे कहते थे पन्जा मै तो धोखे से आठ दस काग्रेंस चमचे मुहर लगाऐगे आप चिंता न करें,। यही प्रचार था तब, न पोलिंग ऐजेंट न पर्ची बटी डर से पर परिणाम भी वही आया था जो उनने बोला था । मुझे उत्तर प्रदेश इलेक्शन ऐजेंट बन इस चुनाव मै भेजा गया वहाँ भी यही आलम था, नारा जब कट रहे थे लिन्गानन्द तब कहाँ गए थे बृम्हानन्द।..✍️ धीरेन्द्र कुमार नायक एडवोकेट छतरपुर (प्रदेश प्रदेश)