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प्रकृति का कोप :बढ़ता तापमान



  

 रवीन्द्र व्यास 

       बढ़ता तापमान  दुनिया भर के लिए संकट की चेतावनी लेकर आया है |आने वाले पांच वर्षो में तापमान लगभग 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की संभावना जताई जा रही है | जिसका सीधा असर  अनेकों स्तरों पर देखने को मिलेगा | प्रकृति ही प्रकृति की व्यवस्थाओं को  ठीक करती है , यह बात आज के  जलवायुपरिवर्तन में देखने को मिल रही है ,  प्रकृति भी मानव से उसके किये गए कार्यों का हिसाब चुकाने पर आमादा है हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO ) ने विश्व के बढ़ते तापमान को लेकर  रिपोर्ट जारी की है रिपोर्ट  में आने वाले ५ वर्षो में तापमान 1.5      से १. 9 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहने का दावा किया किया गया है बढ़ते तापमान का असर हिमालय हिन्दुकुश पर्वत श्रंखला में देखने को मिल रहा है जहाँ तीसरे साल भी हिमपात कम रहा ,इस वर्ष तो और ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है नवम्बर से मार्च के मध्य हिमपात २३. फीसदी कम हुआ है |  ये सारी स्थितियां बताती हैं कि आने वाले समय  में मानव को बहुत सारे  सबक प्रकृति सिखाएगी 

 विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO ) ने   2025-2029 के लिए जारी रिपोर्ट में  वैश्विक तापमान में वृद्धि की उम्मीद जताई है यही नहीं  अगले पांच वर्षों में रिकॉर्ड स्तर पर या उसके निकट बने रहने की संभावना व्यक्त की है रिपोर्ट में पूर्वानुमान लगाया गया है कि 2025 और 2029 के  प्रत्येक वर्ष के लिए वार्षिक औसत ,वैश्विक औसत सतही तापमान 1850-1900 के वर्षों के औसत से 1.2°C और 1.9°C अधिक होने का अनुमान है। 8० फीसदी  संभावना यह  है कि 2025 और 2029 के बीच कम से कम एक वर्ष रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्ष (वर्तमान में 2024) से अधिक गर्म होगा। और 8६ फीसदी  संभावना है कि कम से कम एक वर्ष पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5°C से अधिक होगा। इस  रिपोर्ट में अलग-अलग वर्षों के लिए वैश्विक पूर्वानुमान नहीं दिए गए हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, 2025-2029 के लिए पांच साल की औसत वार्मिंग 1.5°C से अधिक होने की 70 फीसदी  संभावना है। जो  पिछले साल की रिपोर्ट (2024-2028 अवधि के लिए) में 47 फीसदी  से और 2023-2027 अवधि के लिए 2023 रिपोर्ट में 3२ फीसदी  से अधिक है। 

 2015 में पेरिस में हुए अंतरराष्ट्रीय जलवायु सम्मेलन में विश्व के 196  नेताओं ने सहमति जताई थी कि ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं होने देंगे और वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के लिए प्रयास जारी रखेंगे एक दशक बाद हालत जस के तस हैं बल्कि और ज्यादा विनाशक हैं | अगर देखा जाए तो जिला स्तर से लेकर  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  ऐसी कमरों में बैठ कर चिंता जताने वाले लोगों की दुनिया में कमी नहीं है |  

                                                                 दरअसल २०२४ भारत ही नहीं विश्व का सबसे गर्म वर्ष रहा है भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने १५ जनवरी २०२५ को  वार्षिक क्लाइमेट समरी में जानकारी देते हुए स्पष्ट किया था कि वर्ष 2024 भारत के लिए अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है तापमान को लेकर विश्व के अनेकों संगठन भी 2024 को सबसे गर्म वर्ष घोषित कर चुके हैं २०२४ में २१ जुलाई का वो दिन था जब  84 वर्षों में दुनिया में  सबसे गर्म दिन के रूप में रिकॉर्ड किया गया    21 जुलाई को वैश्विक औसत तापमान 17.09 डिग्री सेल्सियस के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था ।

बढ़ते तापमान का असर : 

आईसीआईएमओडी ( इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलोपमेन्ट) ने अप्रैल माह में एक रिपोर्ट जारी की थी रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि हिमालय पर्वत श्रृंखला में  बर्फबारी में कमी आई है |  पिछले तीन वर्षो से यह सिलसिला लगातार जारी है इस वर्ष  इसमें २३.६ फीसदी की गिरावट देखने को मिली जो बीते २३ वर्ष में सबसे कम है 

तापमान में एक डिग्री की  अतिरिक्त वृद्धि  कई तरह की प्राकृतिक समस्या पैदा कर सकती हैं जिनमे  हानिकारक हीटवेवअत्यधिक वर्षा की घटना,  सूखा के हालात ,  बर्फ और ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला बाद सकता है , जिसके असर से  समुद्र के गर्म होने और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होगी और कई इलाके डूबेंगे 

 बढ़ते तापमान के कारण कम होती बर्फ़बारी भी एक गंभीर संकट खड़ा कर रही है इसके कारण  हिमालय से निकलने वाली नदियों के  प्रवाह में  कमी आएगी , करोड़ों लोगों के सामने पानी का संकट खड़ा होगा भूजल पर निर्भरता में  बढ़ेगी और  सूखे जैसे हालात बनेगे 

                                          सीएसई की  भारत को लेकर स्टेट ऑफ एक्सट्रीम वेदर रिपोर्ट  के अनुसार मौसमी घटनाएं 2022 और 2023 की तुलना में २०२४ में ज्यादा हुई | जिसके चलते 2024 के जनवरी से सितंबर  के ९ माह के 274 दिन में से 255  दिन भारत के लोगों को गर्मी ,ठंडी हवाओं ,चक्रवात , बिजली ,भारी बारिश।,बाढ़ , और भूस्खलन का सामना करना पड़ा है | इन प्राकृतिक घटनाओं के कारण 3238 लोगों की अकाल मृत्यु हुई और लगभग 32 लाख हेक्टेयर फसलें प्रभावित हुई |  इसके बावजूद भी मौसम का कहर कम नहीं हुआ था , वर्ष २०२४ का अक्टूबर माह भी 1901 के बाद सबसे गर्म रहा |  

बढ़ता  वैश्विक तापमान इस बात को बताता है कि हमारी पृथ्वी भी तेजी से गर्म हो रही है | डब्लूएचओ ने भी बढ़ते तापमान को लेकर चिंता जताई है , कि अधिक तापमान दुनियाभर में मृत्यु  का एक बड़ा कारण बन सकता है | आशंका जताई गई है कि 2030 से 2050 के मध्य  २ लाख ५० हजार अतरिक्त मौतें सिर्फ जलवायु परिवर्तन के कारण हो सकती हैं | 


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