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आदिवासियों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर धरातल पर काम करने की है जरूरत

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आदिवासियों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर

धरातल पर काम करने की है जरूरत

               डॉ. चन्दर सोनाने



               मध्यप्रदेश के सभी जिलों में कुल 4,321 ऐलोपैथिक सरकारी अस्पताल हैं। इन अस्पतालों में 53,322 बिस्तर उपलब्ध हैं। मध्यप्रदेश के आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग में सरकारी अस्पतालों और वहाँ उपलब्ध बिस्तरों के जिलेवार आँकड़े चौंकाने वाले प्राप्त हुए हैं। प्रदेश के बड़े जिलों में जहाँ पर्याप्त सरकारी अस्पताल और बिस्तरों की संख्या हैं, वहीं दूसरी ओर आदिवासी बहुल जिलों में सरकारी अस्पतालों और बिस्तरों की संख्या निराशाजनक हैं। 

              मध्यप्रदेश के सरकारी अस्पतालों की संख्या निःसंदेह बढ़ी है और बजट भी बढ़ा है। लेकिन इन संसाधनों की जिलेवार तस्वीर देंखे तो वह चौंकाने वाली है। जिन जिलों में स्वास्थ्य सेवाएं अपेक्षाकृत ठीक हैं, वहाँ सरकारी अस्पतालों, डॉक्टरों और बिस्तरों की संख्या की भरमार है। दूसरी ओर आदिवासी, दूरस्थ या पिछड़े क्षेत्र के जिलों को वास्तव में इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है, वहाँ सरकारी संसाधन अत्यन्त सीमित है। 

              बड़े शहरों और आदिवासी जिलों में उपलब्ध सरकारी अस्पताल और बिस्तरों की तुलनात्मक चर्चा करें तो आँकड़े अत्यन्त निराशाजनक है। जहाँ भोपाल, जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर जैसे शहरों में से प्रत्येक में सरकारी अस्पतालों की संख्या 2000 से भी अधिक है। वहीं दूसरी और आदिवासी बहुल जिलों में सरकारी अस्पतालों की संख्या 300 से भी कम है। 

              आर्थिक एवं सांख्यिकी विभागों में उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश के  आदिवासी बहुल 12 जिले ऐसे हैं, जहाँ एलोपैथिक सरकारी अस्पतालों की संख्या 22 से 39 के बीच है। ये आँकड़े संतोषप्रद नहीं कहे जा सकते। अलीराजपुर जिले में सबसे कम 22 सरकारी अस्पताल हैं। डिंडोरी में 26, उमरिया में 30, श्योपुर में 29, मंडला में 35, अनुपपुर में 36, हरदा में 34, निवाड़ी में 28, बैतूल में 39, कटनी में 38, बालाघाट में 35 और बुरहानपुर में 32 ही सरकारी अस्पताल उपलब्ध हैं। इन जिलों में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों से लेकर सामुदायिक अस्पताल तक की संख्या अत्यन्त सीमित है। इससे इन क्षेत्रों के आदिवासियों को सहज उपलब्ध होने वाली स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पाती है। 

                आदिवासी बहुल जिलों में जहाँ अत्यन्त कम सरकारी अस्पताल हैं, वहीं बड़े शहरों वाले जिलों जैसे भोपाल में 116 सरकारी अस्पताल हैं। इन्दौर में 121, जबलपुर में 159, ग्वालियर में 132 और सागर में 148 सरकारी अस्पताल हैं। यह संख्या संतोषप्रद कही जा सकती है। किन्तु इन जिलों की तुलना में आदिवासी बहुल जिलों की संख्या देखें तो स्थिति निराशाजनक है। 

                 बड़े शहरों और आदिवासी जिलों में जहाँ सरकारी अस्पतालों की संख्या में तुलनात्मक बहुत ज्यादा अंतर हैं, वहीं इन अस्पतालों में उपलब्ध बिस्तरों की संख्या के बीच भी बहुत अंतर है। जैसे - भोपाल जिले में 2,318 सरकारी अस्पताल है। इन्दौर में 2,220, जबलपुर में 2,463, ग्वालियर में 1,958 और सागर जिले में 1,876 बिस्तर उपलब्ध हैं। ये प्रदेश के कुल गिने-चुने जिले हैं, जहाँ बिस्तरों की उपलब्धता चिकित्सा मानकों के नजदीक है। 

                दूसरी ओर आदिवासी बहुल जिलों में बिस्तरों की कम संख्या चौंकाने वाली है। जैसे अलीराजपुर जिले के सरकारी अस्पतालों में मात्र 312 बिस्तर ही उपलब्ध है। डिंडोरी में 420, श्योपुर में 387, उमरिया में 385, हरदा में 441,मंडला में 468, बुरहानपुर में 476 और झाबुआ में 497 बिस्तर ही उपलब्ध है। इन जिलों में कुल बिस्तरों की संख्या 500 से भी कम है। यह आँकड़े निराशाजनक कहे जा सकते हैं। 

                   मध्यप्रदेश में जहाँ आदिवासी बहुल जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत निराशाजनक है, वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी हालत बदहाल है। उदाहरण के लिए केवल एक आदिवासी जिले धार के एक विकासखंड बाग की ही बात करें तो हमें शिक्षा के हालात का सहज ही अंदाजा हो जाता है। बाग विकासखंड के नरवाली सेक्टर में 40 स्कूलों में से 13 स्कूलों में शिक्षक ही नहीं है। सहज ही कहा जा सकता है कि इन आदिवासी गाँवों के बच्चे शिक्षा की सुविधा से वंचित किए गए हैं। बाकी के स्कूलों में भी मात्र एक-एक शिक्षक ही हैं। जब किसी प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 1 से 5 वीं तक के समस्त विषयों को पढ़ाने की जिम्मेदारी मात्र एक शिक्षक के जिम्मे होती है, तो वह किस प्रकार अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है ? यह सोचने वाली गंभीर बात है।

                     मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव एक विशेष विजन वाले मुख्यमंत्री माने जाते हैं। उन्हें प्रदेश की कमान संभाले अभी एक वर्ष से कुछ समय ही अधिक हुआ है। उन्हें चाहिए कि वे प्रदेश के आदिवासी और पिछड़े जिलों में सरकारी अस्पतालों , बिस्तरों, डॉक्टरों और स्टाफ की संख्या बढ़ाएं, ताकि आदिवासियों को स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सके। इसी प्रकार प्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में जहाँ भी शिक्षकविहीन स्कूल हैं, वहाँ शिक्षकों की तैनाती करें। इसके साथ ही जिन सरकारी स्कूलों में मात्र एक शिक्षक है, वहाँ कम से कम दो शिक्षकों की नियुक्ति करे, ताकि आदिवासियों के बच्चों को मूलभूत शिक्षा प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त आदिवासी बहुल जिलों के सरकारी स्कूलों में पर्याप्त भवन और संसाधनों की व्यवस्था की जाना आवश्यक है।

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