रवीन्द्र व्यास
कांग्रेस के नेता और वर्तमान में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, राहुल गांधी इन दिनों दक्षिण अमेरिका के चार देशों ब्राजील, कोलंबिया, पेरू और चिली के लगभग दस दिवसीय दौरे पर हैं। उनकी यह यात्रा राजनीतिक, शैक्षिक और व्यावसायिक क्षेत्रों के नेताओं व बुद्धिजीवियों से संवाद स्थापित करने पर केंद्रित बताई जा रही है। कांग्रेस इसे भारत और वैश्विक दक्षिण के बीच संबंधों को मजबूती की दिशा में ऐतिहासिक प्रयास मान रही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी इसे भारत विरोधी कूटनीति का उदाहरण मानकर कठोर आलोचना कर रही है।
कांग्रेस पार्टी का तर्क है कि राहुल गांधी की वर्तमान विदेश यात्रा भारत और दक्षिण अमेरिकी देशों के बीच संबंधों में नई ऊर्जा भर सकती है। वे वहां के राष्ट्रपतियों, प्रमुख राजनीतिक नेताओं, विश्वविद्यालयों के छात्रों तथा व्यावसायिक जगत के व्यक्तित्वों से मुलाकात कर रहे हैं। इस दौरान लोकतंत्र, बहुलतावाद, आर्थिक सहयोग और भविष्य के वैश्विक नेतृत्व जैसे विषयों पर बातचीत हो रही है। कांग्रेस का दावा है कि अमेरिकी शुल्क नीति और बदलते वैश्विक व्यापारिक समीकरणों के बीच भारत को नए व्यापारिक साझेदारों की तलाश करनी होगी। दक्षिण अमेरिका इसमें संभावित विकल्प है। कांग्रेस यह भी मानती है कि यह यात्रा गुटनिरपेक्ष आंदोलन और वैश्विक दक्षिण की एकता की पुरानी परंपरा को नया आयाम दे सकती है। पार्टी इसे राहुल गांधी की वैश्विक दृष्टि और रणनीतिक सोच की अभिव्यक्ति मानते हुए भारतीय विदेश नीति का पूरक प्रयास बता रही है।
बीजेपी की आलोचना: भारत विरोध का मंच?
दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी राहुल गांधी के विदेश दौरों को संदेह की दृष्टि से देखती रही है। भाजपा ने इस यात्रा पर आरोप लगाया है कि राहुल गांधी विदेशों में जाकर भारत विरोधी ताकतों से मेलजोल करते हैं। पार्टी के प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने इस दौरे को भारत के खिलाफ साजिश करार देते हुए सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी जैसे घटनाक्रमों से जोड़ा। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी उनके पुराने बयानों की याद दिलाते हुए इसे राष्ट्रहित के खिलाफ बताया। भाजपा का मुख्य आरोप यही है कि राहुल गांधी विदेशों में जाकर भारतीय लोकतंत्र, चुनाव प्रणाली और राष्ट्रीय एकता पर सवाल उठाते हैं, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि धूमिल होती है और विदेशी हस्तक्षेप जैसी अनुचित अपेक्षाओं को बढ़ावा मिलता है।
विदेशों में दिए विवादित बयान
राहुल गांधी पर आरोप है कि उन्होंने कई बार विदेशों में ऐसे बयान दिए हैं, जिनसे भारत के लोकतांत्रिक ढांचे और सामाजिक ताने-बाने पर नकारात्मक असर पड़ा। अमेरिका की एक यात्रा के दौरान उन्होंने भारतीय चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए थे। भाजपा ने इसे भारत बदनाम यात्रा नाम दिया। उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कमी, भय और नफरत के माहौल तथा बहुलतावाद को खतरे में होने की बात सार्वजनिक मंचों पर कही। इन बयानों से विपक्ष ने यह तर्क दिया कि वे भारत की वास्तविक स्थिति को दिखा रहे हैं, लेकिन सत्ताधारी पार्टी ने इसे राष्ट्रविरोधी कृत्य करार दिया। उनके कुछ पुराने बयानों को लेकर अदालतों और सुप्रीम कोर्ट तक ने सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सेना और सीमा विवादों पर दिए गए असावधानीपूर्ण वक्तव्यों के लिए फटकार भी लगाई।
जनता की अपेक्षा और संदेह
भारतीय राजनीति में यह सामान्य धारणा है कि नेता देश हित के लिए निजी और पारिवारिक हितों से ऊपर उठकर काम करें। राहुल गांधी जैसे बड़े राजनीतिक परिवार के सदस्य से जनता की उम्मीदें भी अधिक रहती हैं। लेकिन उनके बयानों और विदेश में किए गए वक्तव्यों ने इन उम्मीदों पर मिश्रित प्रभाव डाला है। समर्थकों का मानना है कि राहुल गांधी भारत की वास्तविकता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर कर लोकतंत्र को मजबूत करने की कोशिश करते हैं। आलोचकों के अनुसार वे बार-बार ऐसे बयान देते हैं, जिनसे राष्ट्रीय एकता को खतरा उत्पन्न होता है और विदेशी शक्तियों को भारत के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी का अवसर मिलता है। यही कारण है कि जनता के बीच उनके प्रति विश्वास और अविश्वास की स्थिति समानांतर रूप से मौजूद है।
राजनीति में समझ लेकिन नेतृत्व पर सवाल
राहुल गांधी को लेकर यह मान्यता है कि उनमें राजनीतिक समझ है और वे जनता से जुड़ने के प्रयास निरंतर करते हैं। परंतु निर्णायक नेतृत्व देने की कसौटी पर वे अभी तक खरे नहीं उतर पाए हैं। पार्टी संगठन के स्तर पर उनका प्रभाव सीमित रहा है। विरोधाभासी बयान उन्हें लगातार विवादों में डालते हैं। उनकी विदेश यात्राओं का पैटर्न भी भाजपा के लिए एक बड़ा राजनीतिक हथियार बन चुका है। इससे यह छवि उभरती है कि राहुल गांधी भारत के विपक्षी नेता के रूप में सक्रिय हैं, परंतु निर्णायक और परिपक्व नेता के रूप में उनकी भूमिका अभी भी विकासशील चरण में है।
संवाद या विवाद की राजनीति?
राहुल गांधी का यह दक्षिण अमेरिकी दौरा कांग्रेस के लिए अवसर भी है और चुनौती भी। अवसर इसलिए कि वे भारत-दक्षिण अमेरिका संबंधों को नई दिशा दे सकते हैं और वैश्विक दक्षिण में भारत की भूमिका को सशक्त बना सकते हैं। चुनौती इसलिए कि भाजपा इस दौरे को भारत विरोधी गतिविधियों से जोड़कर राजनीतिक हमला करने में पीछे नहीं रहेगी।
दरअसल, राहुल गांधी की राजनीतिक यात्रा का सबसे बड़ा विरोधाभास यही है कि उनके समर्थकों की नजर में यह *लोकतांत्रिक ईमानदारी* है और आलोचकों की नजर में यह राष्ट्रविरोधी बयानबाजी।
यह साफ है कि राहुल गांधी के बयानों और विदेश यात्राओं ने भारतीय राजनीति में एक असहज बहस को जन्म दिया है। समय ही यह तय करेगा कि उनकी यह वैश्विक दृष्टि भारत के लोकतंत्र और विदेश नीति को मजबूत करेगी या फिर राजनीतिक विवादों में ही गुम हो जाएगी।
