नर्मदा महोत्सव के बीच दम तोड़ती नर्मदा: प्रदूषण, रेत खनन और जंगलों की कटाई से गंभीर संकट
| राज कुमार सिन्हा |
प्रत्येक वर्ष शरद पूर्णिमा के दिन भेङाघाट में
नर्मदा महोत्सव के भव्य आयोजन होते हैं, जो इस महान नदी की
महत्ता और सांस्कृतिक महत्व का जश्न मनाते हैं। लेकिन इस उत्सव के उज्जवल परदे के
पीछे नर्मदा नदी गंभीर संकट में है। जबलपुर से प्रतिदिन लगभग 136 एमएलडी गंदा सीवेज सीधे नर्मदा में जा रहा है, जिसमें
से केवल 58.7 एमएलडी का उपचार हो पाता है। लगभग 115 एमएलडी बिना ट्रीटमेंट के नर्मदा अशुद्ध जल ग्रहण कर रही है, जिससे यह पीने योग्य न रह गई है और प्रदूषण के स्तर खतरनाक हो गए हैं।
नर्मदा की 41 सहायक नदियों
में से कई सूखने के कगार पर हैं। जंगलों की कटाई और अवैध अतिक्रमण से वर्षा जल का
भूगर्भ में संचयन कम हुआ है, जिससे झरनों और धाराओं का
प्रवाह घटा है। इससे नर्मदा के जल प्रवाह में असंतुलन पैदा हो गया है, जिससे बरसात के दिनों में बाढ़ और गर्मी में जलस्तर तेजी से गिर रहा है।
वन्यजीव गलियारे टूटे हैं, जैव विविधता घट गई है और नदी की
स्वयं शुद्धिकरण क्षमता प्रभावित हुई है।
सहायक नदियों के जंगल कटने से मिट्टी कटाव बढ़ा
है, जिससे नर्मदा के बड़े जलाशयों में सिल्टेशन की समस्या
बढ़ रही है। नर्मदा पर बने बरगी, इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर और सरदार सरोवर जैसे बांधों में हजारों हेक्टेयर वन भूमि डूब
चुकी है, और प्रस्तावित नए बांधों से अतिरिक्त वन क्षेत्र
डूब सकता है।
अवैध रेत खनन भी नर्मदा के लिए बड़ा खतरा बन गया
है। नदी की रेत का अवैध उत्खनन न केवल नदी के तल को गहरा कर रहा है, बल्कि किनारों के कटाव और प्रवाह के मार्ग को अस्थिर कर रहा है। इससे भूजल
पुनर्भरण कम हो रहा है और नदी घाटी के कुओं व बोरवेल सूख रहे हैं। प्रदूषण के कारण
जलीय जीवों का आवास नष्ट हो रहा है, जिससे स्थानीय मछुआरों
और किसानों की आजीविका प्रभावित हुई है।
आबादी के बढ़ते दबाव और औद्योगिक व घरेलू
प्रदूषण के चलते नर्मदा का जलस्तर कम होता जा रहा है। जबलपुर, होशंगाबाद और अन्य नदियों के किनारे बसे शहर नर्मदा प्रदूषण का बड़ा स्रोत
बनते जा रहे हैं। घनी आबादी और अपशिष्ट प्रबंधन के अभाव में नर्मदा पानी पीने
योग्य नहीं रह गया है और स्वास्थ्य जोखिम बढ़ रहा है।
सरकार इस समस्या से निपटने के लिए कई योजनाएं
चला रही है, जिसमें कुल 2459 करोड़
रुपए के विशाल प्रोजेक्ट के तहत नर्मदा नदी की सफाई और प्रदूषण नियंत्रण शामिल है।
साथ ही प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है और नदी के किनारे पौधारोपण व जैव
विविधता संरक्षण की पहल की जा रही है। ग्राम स्तर पर नदी पुनर्जीवन के प्रयास भी
आवश्यक माने जा रहे हैं।
नर्मदा महोत्सव के उत्सव की धूमधाम के बीच नर्मदा नदी के गंभीर प्रदूषण, जंगल कटाई, अवैध रेत खनन और जल संकट जैसे सवालों पर गहराई से चिंतन और त्वरित कार्यवाही आवश्यक है। यदि नदी के इस संकट को नहीं समझा गया और जल संरक्षण के उपाय न किए गए तो मध्य भारत की यह जीवनरेखा गंभीर रूप से प्रभावित होगी।
राज कुमार सिन्हा
बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ जबलपुर
