भागवत के शताब्दी भाषण में वे नए संकेत, जो संघ की अगली दिशा तय कर सकते हैं
जेन जी से बेरोजगारी तक, और धार्मिक सहिष्णुता से बीजेपी संबंधों तक आरएसएस प्रमुख का भाषण केवल बयान नहीं, आने वाले दौर की रूपरेखा
रवीन्द्र व्यास
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने इस वर्ष अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे किए। इस मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में परंपरागत विजयादशमी भाषण दिया, जो न केवल ऐतिहासिक था, बल्कि मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए बेहद संकेत पूर्ण भी।
भाषण में भागवत ने पहलगाम हमले, नक्सलवाद, पड़ोसी देशों की अस्थिरता, जेन ज़ी पीढ़ी की विचारधारा और धार्मिक सौहार्द जैसे विषयों पर चर्चा की। विश्लेषकों का मानना है कि यह भाषण संघ के अगले दशक के वैचारिक मार्गदर्शन का संकेत देता है।
पहलगाम हमला और नक्सलवाद पर टिप्पणी
भागवत ने भाषण की शुरुआत पहलगाम हमले के उल्लेख से की, जिसमें आतंकियों ने छब्बीस भारतीय नागरिकों की उनका धर्म पूछकर हत्या की। उन्होंने कहा कि इस घटना ने भारत की एकता, सेना के शौर्य और नेतृत्व की दृढ़ता को प्रदर्शित किया।
उन्होंने चेताया कि भारत को अपनी सुरक्षा को लेकर सजग रहना होगा क्योंकि अब यह स्पष्ट हो चुका है कि अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में हमारे सच्चे मित्र कौन हैं और कहाँ तक हैं।
नक्सलवाद पर उन्होंने कहा कि शासन की कड़ी कार्रवाई ने इस उग्र आंदोलन को कमजोर किया है, लेकिन स्थायी समाधान तभी संभव है जब उन क्षेत्रों में न्याय, विकास व सामाजिक सामरस्य’ स्थापित किया जाए।
पड़ोसी देशों की अस्थिरता
भागवत ने श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में हालिया राजनीतिक अस्थिरता का उदाहरण देते हुए कहा कि जब सत्ता जनता से दूर हो जाती है और नीतियाँ संवेदनशील नहीं रहतीं, तो असंतोष उभरता है। उन्होंने हिंसक क्रांतियों की दिशा को विफल बताया और कहा कि ऐसे परिवर्तनों से देश के बाहर की स्वार्थी ताकतें फायदा उठाती हैं।
जेन ज़ी और नई विचारधारा पर संकेत
नेपाल में हाल के जेन ज़ी द्वारा नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों का अप्रत्यक्ष संदर्भ लेते हुए भागवत ने कहा कि एक उलटी और घातक विचारधारा भारत में भी अपने पांव फैलाने की कोशिश कर रही है।
उन्होंने चेताया कि यह विचारधारा सामा
जिक
अराजकता को जन्म दे सकती है, जबकि विपरीत रूप से उन्होंने
भारतीय नई पीढ़ी में देशभक्ति और संस्कृति के प्रति आस्था के बढ़ते भाव को आशा की
किरण बताया।
राजनीतिक विश्लेषक मानते है कि यह टिप्पणी उन युवाओं से जुड़ी चिंता का संकेत है, जिसमें बेरोजगारी और पलायन जैसी समस्याओं से असंतोष पनप रहा है। उनका कहना है कि यह सरकार और भाजपा को समय रहते सतर्क रहने का संकेत भी हो सकता है।
धार्मिक सहिष्णुता
अपने भाषण में भागवत ने मुसलमान और ईसाई समुदायों की ओर संकेत करते हुए कहा कि वे विदेशी चले गए लेकिन उनके धर्म को अपनाने वाले हमारे अपने बंधु आज भी यहीं हैं। उन्होंने भारत की विविधता, सहिष्णुता और अपनत्व की परंपरा को संघ का मूल बताया। साथ ही उन्होंने चेताया कि छोटी बातों पर हिंसा, किसी समुदाय को उकसाना या शक्ति प्रदर्शन करना उचित नहीं है।
आरएसएस और बीजेपी के रिश्तों पर संतुलन
अक्सर मोहन भागवत के विजयादशमी भाषणों को केंद्र सरकार के लिए अप्रत्यक्ष संदेश माना जाता है, लेकिन इस बार ऐसी कोई मुखर आलोचना नहीं दिखी। इसके पीछे राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि मोदी आरएसएस के एजेंडे को पूरा कर रहे हैं, इसलिए संघ सार्वजनिक रूप से टकराव नहीं दिखाना चाहता। सरकार ने आरएसएस के तीन प्रमुख उद्देश्यों राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता को आगे बढ़ा दिया है, इसलिए संघ फिलहाल संतुष्ट है।
सौवें वर्ष में आरएसएस का संदेश
सौ वर्ष पूरे होने के इस भाषण में मोहन भागवत ने संघ की सोच को सुरक्षा, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक आत्मविश्वास के तीन सूत्रों में बाँधा। हालांकि उनके भाषण में आर्थिक असमानता, युवाओं के असंतोष और धार्मिक ध्रुवीकरण जैसे प्रश्नों की आहट भी सुनाई दी जिन पर संघ और उसकी सहयोगी सत्ता, दोनों की अग्निपरीक्षा अब अगले दशक में होगी।

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