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आतंक का केंद्र बना विश्वविद्यालय: जांच के घेरे में शिक्षा का केंद्


रवीन्द्र व्यास 

दिल्ली के समीप फरीदाबाद में स्थित

अल-फलाह विश्वविद्यालय  अचानक राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया है। 
10 नवंबर को दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के पास हुए बम धमाके की जांच जब आगे बढ़ीतब पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों की रडार पर ये विश्वविद्यालय आ गया। ट्रस्ट द्वारा संचालित यह संस्थानजहाँ अब तक शिक्षा और चिकित्सा की उन्नत सुविधाओं इसकी पहचान थींअब सुरक्षा एजेंसियों के सख्त घेरे में है।

कैसे जुड़ा विश्वविद्यालय हमले से?

अल-फलाह विश्वविद्यालय का नाम पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की तेजी से बढ़ती पड़ताल में तब आयाजब संस्थान से जुड़े तीन डॉक्टरों की गिरफ़्तारी हुई। इनमें फिजियोलॉजी विभाग के डॉ. मुज़म्मिल शकीलफार्माकोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शाहीन सईद और जनरल मेडिसिन के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उमर नबी शामिल हैं। तीनों पर दिल्ली धमाके में संलिप्तता और भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री रखने का आरोप है। जाँच में यह भी सामने आया कि विस्फोटक और हथियार फरीदाबाद के धौज एवं फतेहपुर तगा गांव के कमरों से प्राप्त हुएजिन्हें डॉक्टरों ने किराए पर ले रखा था।  मालिक भी जांच के दायरे में हैं और इनमें एक विश्वविद्यालय की मस्जिद के इमाम पाए गए।

ट्रस्ट और प्रशासन की प्रतिक्रिया

ट्रस्ट व विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने स्तर से सभी आरोपों का खंडन किया है। मेडिकल साइंसेज कॉलेज की प्राचार्या डॉ. भूपिंदर कौर ने स्पष्ट कहा, “गिरफ्तार लोग हमारे संस्थान में केवल प्रोफेशनल हैसियत से कार्यरत थेविश्वविद्यालय या कॉलेज की कोई संलिप्तता नहीं पाई गई।” इसके अलावाप्रशासन ने रसायन या विस्फोटक के कथित संबंधों को खारिज करते हुएहर जांच एजेंसी को पूर्ण सहयोग देने का भरोसा दिया है।

छात्रों में सन्नाटाभविष्य की चिंता

पूरा परिसर इस समय असहज और तनावपूर्ण माहौल से गुजर रहा है। मेडिकल व पैरा-मेडिकल कोर्स कर रहे सैकड़ों छात्र सशंकित हैं। छात्र मानते हैं कि यदि विश्वविद्यालय की साख खराब होती है तो उसकी डिग्री और रोजगार अवसरों पर भी असर पड़ेगा। कई ने डर के कारण स्थानांतरित होने की बात भी कही है। अस्पताल में मरीजों की संख्या भी काफी घट गई हैजिससे व्यवस्थाओं पर अप्रत्यक्ष आर्थिक दबाव भी देखने को मिल रहा है।

जांच का दायरा और साख की चुनौती

एनआईएहरियाणा पुलिसजम्मू-कश्मीर पुलिस और यूपी पुलिस द्वारा संयुक्त जांच का दायरा ट्रस्टविश्वविद्यालय और उससे जुड़े कर्मचारियों तक विस्तार किया जा चुका है। अभी तक की जांच किसी संगठित संस्थागत षड्यंत्र के स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं कर पाई हैलेकिन संस्थान सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर गहरे संदेहों और बदनामी से जूझ रहा है।

 यह प्रकरण दिखाता है कि  आतंकवाद जैसी घटनाओं की जांच में निजी व सामाजिक संस्थाओं का भी अप्रत्यक्ष दुष्प्रभाव हो सकता है, | एनआईए और हरियाणा पुलिस की संयुक्त जांच अब विश्वविद्यालय, उससे जुड़े कर्मचारियों और ट्रस्ट की वित्तीय गतिविधियों तक विस्तृत हो गई है। जैसे-जैसे नए नाम सामने आ रहे हैं, अल-फलाह विश्वविद्यालय की साख पर और सवाल खड़े होते जा रहे हैं।

कभी शिक्षा और सामाजिक सेवा के नाम से रजिस्टर्ड यह विश्वविद्यालय अब "आतंक के साये में फंसा एक शिक्षण संस्थान" बनकर चर्चा में है। आने वाले दिनों में जांच एजेंसियों की रिपोर्ट तय करेंगी कि यह मामला व्यक्तिगत जिम्मेदारी का है या संस्थागत असावधानी का  लेकिन निश्चित है कि इस घटनाक्रम ने सैकड़ों छात्रों के भविष्य और विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता दोनों को गहरे संकट में डाल दिया है।

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