बुंदेलखंड की डायरी
बुंदेलखंड में 4250 तालाब चोरी हो गए ?
रवीन्द्र व्यास
बुंदेलखंड के सात जिलों के जिलाधिकारी इन दिनों गायब हुए तालाबों की खोज में जुटे हैं | तालाबों के गायब होने का ये सनसनीखेज मामला बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश वाले भू भाग से आया है | इलाहाबाद हाई कोर्ट के संज्ञान में आने के बाद तालाबों के गायब होने का मामला उजागर हुआ | अब १७ सितम्बर २०२५ को हाई कोर्ट सुनवाई करेगा | बुंदेलखंड और पानी का नाता एक दूसरे से जुड़ा हुआ है , ये वो इलाका है जो पानी की त्रासदी से सदियों से जूझ रहा है | असल में बुंदेलखंड चाहे उत्तर प्रदेश का हो अथवा मध्य प्रदेश का यहाँ पानी ही है जो लोगों को भूखा मारता है ,आत्म ह्त्या और पलायन के लिए मजबूर करता है |
बांदा के लुकतरा गांव में खोदे गए 42 तालाबों की सूची उन्हें दी गई। इसमें मौके पर ज्यादातर तालाब नदारद मिले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ के 102वें एपीसोड में बांदा के लुकतरा गांव का जिक्र करके प्रशंसा की थी। इस गाँव में ४२ तालाब बनाने की बात कही गई थी , जब इसकी जमीनी पड़ताल जब बांदा के समाजसेवी और पत्रकारों ने की तो उनमे से अधिकाँश गायब थे |
मामला कैसे उठा?
मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार बुंदेलखंड क्षेत्र में लगभग 4250 तालाब गायब हो चुके हैं | कोर्ट ने इसमुद्दे को स्वत: संज्ञान में लेकर जनहित याचिका दर्ज की है। अधिवक्ता प्रदीप कुमारसिंह और एस.सी. वर्मा को न्यायमित्र नियुक्त किया गया है ,ताकि वे मामले कीनिष्पक्ष जाँच करें।तालाबों के गायब होने के कारण कई क्षेत्रों में तालाबों की भूमि चकबंदी मेंआवंटित की जा चुकी है।अतिक्रमण के कारण तालाब सिकुड़ गए या पूरी तरह खत्म हो चुके हैं।कुछ तालाबों में कचरा और मलबा भर गया है , जिससे इनका अस्तित्व खतरे में है।जल संरक्षण योजनाओं के बावजूद कई पुराने तालाबोंको संरक्षण नहीं मिला।स्थानीय हालात और प्रशासनिक प्रयास कई गांवों में तालाब खोदने और जल संरक्षण मुहिम के बावजूद तालाबों की संख्या घट रही है।
तालाबों की खोज
ललितपुर और झांसी जिलों में तहसील स्तर पर भू-अधिपत्य विभाग के अधिकारी तालाबों का स्थलीय सर्वे कर रहे हैं।बुंदेलखंड के कई तालाब जो कभी पेयजल और सिंचाई का स्रोत थे, अब अतिक्रमण, कूड़ा-करकट और जल प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं।बांदा जिला प्रशासन ने तालाबों के संरक्षण को लेकर अभियान चलाए हैं, लेकिन पुराने तालाबों की बदहाली बनी हुई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के संज्ञान और नोटिस के बाद उम्मीद की जा रही है कि जिला प्रशासन अपनी रिपोर्ट देकर इस संकट से निपटने के उपाय सुझाएगा तथा गायब तालाबों के पुनः संरक्षण व पुनर्निर्माण पर ज़ोर देगा।यह मामला बुंदेलखंड की जल संरक्षण और पारंपरिकजल स्रोतों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर चेतावनी है। कोर्ट के आदेश ने स्थानीयप्रशासन और सरकार के सामने जल संचयन की ज़िम्मेदारी को और बढ़ा दिया है।
बुंदेलखंड में गायब तालाबों की संख्या लगभग 4250 इस तरह आंकी गई थी:
यह आंकड़ा मीडिया में प्रकाशित खबरों पर आधारित है, जिसमें बुंदेलखंड क्षेत्र के सात जिलों में तालाबों के तेजी से गायब होने की स्थिति बताई गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस रिपोर्ट का स्वत:संज्ञान लेकर जनहित याचिका दायर की। कोर्ट ने 1359 फसली वर्षसे लेकर पिछले 20 सालों तक के विस्तृत सर्वे कराने के आदेश दिए हैं। सर्वे के लिए झांसी, ललितपुर, बांदा,चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर और जालौन जिलाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे व्यक्तिगत हलफनामे में अपने-अपने जिलों में मौजूद और गायब तालाबों का विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत करें और गायब होने के कारणों की भी जानकारी दें। अभी तक का यह अनुमान पिछले रिकॉर्ड, ग्रामीण और राजस्व अभिलेखों, सर्वे रिपोर्ट तथा स्थानीय शिकायतों के आधार पर स्थापित किया गया है। अदालत ने संबंधित जिलाधिकारियों कोनोटिस जारी कर गंभीर जांच आदेश दिए है ताकि सही और विस्तृत आंकड़े सामने आ सकें।
संक्षेप में, यह आंकड़ा स्थायीऔर सटीक सर्वे से नहीं, बल्कि मीडिया रिपोर्ट और पुराने रिकॉर्ड के आधार पर प्रारंभिक अनुमान के तौर पर सामने आया है, |।बुंदेलखंड में गायब तालाबों की संख्या 4250 के आंकड़े को लेकर अब तक उपलब्ध जानकारी में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला हैकि इस गिनती को किसी पूर्णतया स्वतंत्र टीम या संस्था ने क्रॉस-चेक किया हो।फिलहाल यह आंकड़ा एक औपचारिकसर्वे या स्वतंत्र जांच से वैरीफाई (क्रॉस-चेक) नहीं हुआ है, बल्कि कोर्ट के निर्देशानुसार अब इसे उचित तरीके से जांचा और पुष्ट किया जाएगा।
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तालाबों की व्यथा :
तालाब कहीं के हो चाहे उत्तर प्रदेश वाले बुंदेलखंड के हो अथवा मध्यप्रदेश वाले बुंदेलखंड के अथवा देश प्रदेश के किसी भी क्षेत्र के , इनका सृजन मानव ने किया और इनका विनाश करने में भी मानव पीछे नहीं है | बुंदेलखंड के एम् पी वाले इलाके से भी गायब होने वाले और सिकुड़ने वाले तालाबों की संख्या सैकड़ों में नहीं हजार में है | पर इनका ना तो कोई विस्तृत लेखा जोखा है और ना किसी को चिंता है | शासकीय तंत्र और राजनैतिक तंत्र जिस पर देश गाँव की धरोहर बचाये रखने की जिम्मेदारी है वह भी इस विनाश प्रक्रिया में सहभागी बनी है | छतरपुर नगर में एक तालाब है किशोर सागर , इसे लोग पीडियों से जिस दिशा में देखते आये तंत्र की कलाकारी से इसे उसके उलट दिशा में बताया जाने लगा | ये कहानी सिर्फ छतरपुर तक सीमित नहीं है , हर नगर कसबे में इस तरह के हालात और कथाएं सुनने को मिल जाती हैं |
असल में बुंदेलखंड क्षेत्र में तालाबों के महत्त्व को गौड़ और चंदेलकाल में बहुत अच्छे से समझ लिया गया था | इसी कारण इस इलाके में हजारों की संख्या में तालाब बनाये गए , और उनसे निकली नहरें किसान के खेत तक पहुंची | इन तालाबों की इंजिनयरिंग देख कर आज के इजीनियर दांतो टेल ऊँगली दबा लेते हैं | पर आधुनिक समाज ने तालाबों , कुओं ,बावड़ी को कूड़ा दान समझ लिया , उन्हें पाट कर घर बना लिए |



