बुंदेलखंड की डायरी
ग्रेटर पन्ना लैंडस्केप योजना से कितने सुरक्षित
होंगे वन्य जीव
रवीन्द्र व्यास
ग्रेटर पन्ना लैंडस्केप मैनेजमेंट प्लान और केन-बेतवा लिंक परियोजना भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं, जो बुंदेलखंड क्षेत्र के सतत विकास, वन्यजीव संरक्षण तथा जल संरक्षण के उद्देश्य से बनाई गई हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व का लगभग 25% हिस्सा (५८०० हेक्टेयर भूमि) केन-बेतवा लिंक परियोजना के डूब क्षेत्र में आ रहा है।वन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई (लगभग 23 लाख पेड़) की जाएगी, जो जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है और वन्य जीवों के लिए आवश्यक प्राकृतिक आवासों को कम कर सकती है। जिससे बाघों के प्राकृतिक आवास का बड़ा हिस्सा नष्ट हो सकता है। घड़ियालों के प्रमुख आवासों में से एक केन नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है,| इसके लिए ग्रेटर पन्ना लैंडस्केप मैनेजमेंट प्लान कितना कारगर होगा यह आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा |
वर्ष 2023 में प्रारंभ हुआ इस योजनाओं का उद्देश्य पन्ना टाइगर रिजर्व और आसपास के जिलों के जैव विविधता एवं वन्यजीव आवास को संरक्षण देना है, और क्षेत्र में जल संकट को दूर करने के लिए नदी जोड़ो परियोजना का क्रियान्वयन करना है।योजना को २०३२ तक पूर्ण होने का लक्ष्य तय किया गया है | इस परियोजना पर 3186 करोड़ की राशि व्यय की जायेगी |
ग्रेटर पन्ना लैंडस्केप मैनेजमेंट प्लान मध्यप्रदेश के पन्ना, सतना, टीकमगढ़, कटनी, छतरपुर, दमोह, सागर, रीवा तथा उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, ललितपुर जिलों में लागू किया गया है । इसका उद्देश्य इन क्षेत्रों में बाघ, गिद्ध, घड़ियाल जैसी प्रमुख प्रजातियों के आवास संरक्षण हेतु वैज्ञानिक रणनीति को अपनाना है। लगभग 47,000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र का संरक्षण किया जाना है।
रणनीति
असल में पन्ना टाइगर रिजर्व का लगभग 25% हिस्सा केन-बेतवा लिंक परियोजना में डूबना तय है। जिसके चलते पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य जीवों का आशियाना भी उजड़ेगा , सरकार ने इसके प्रभावों की भरपाई और वन्य जीवों के संरक्षण हेतु आसपास के जिलों में नए वन, जल स्रोत, बाघ गलियारे और पुनर्वास केंद्र स्थापित करने के लिए यह योजना शुरू की है | जिसमे पन्ना में 3,000 से अधिक गिद्धों के संरक्षण के लिए विशेष क्लस्टर और पुनर्वास केंद्र बनाए जाएंगे। घड़ियालों की संख्या बढ़ाने के लिए जल स्रोत बनाए जाएंगे। इंटीग्रेटेड रिसर्च एन्ड लर्निंग सेंटर (IRLC) , जो निगरानी, डाटा संग्रह, अनुसंधान और प्रबंधन का कार्य करेगा।वही भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) जैसी संस्थाएँ इस योजना के वैज्ञानिक पक्ष को संभाल रही हैं, जो पुनर्वास कार्य को प्रभावी बनाने में मदद कर रही हैं।वन्यजीव आवास संरक्षण, मानव-वन्यजीव संघर्ष कम करने के लिए जागरुकता अभियान और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
पन्ना नेशनल पार्क
पन्ना नेशनल पार्क पन्ना और छतरपुर जिला में 542.67 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह पार्क , बाघों और अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण का केंद्र है और भारत के जैविक धरोहर स्थलों में प्रमुख स्थान रखता है। केवल पर्यटन स्थल ही नहीं बल्कि मध्य भारत की पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रकृति की धरोहर और पर्यावरण संरक्षण की गवाही देता पन्ना टाइगर रिजर्व यह न केवल अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है, बल्कि मध्य भारत में वन्यजीवों के लिए एक सुरक्षित जगह भी है।
इसे वर्ष 1994 में भारत के 22वें टाइगर रिजर्व और मध्य प्रदेश के पांचवें रिजर्व के रूप में घोषित किया गया।वर्ष 2007 में भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा इसे भारत का सबसे अच्छी तरह से संरक्षित राष्ट्रीय उद्यान होने का एक्सीलेंस अवार्ड मिला।वर्ष 2011 में इसे बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया।
यह पार्क कई दुर्लभ और विलुप्तप्राय जीवों का प्राकृतिक निवास स्थान है।बाघों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, क्योंकि पूर्व में यहां बाघों की पूरी तरह से समाप्ति हो गई थी, लेकिन सफल पुनर्स्थापन कार्यक्रम से आबादी बढ़ी है।तेंदुआ (Indian Leopard)स्लॉथ भालू (Sloth Bear)चीतल (Spotted Deer)चिंकारा (Indian Gazelleनीलगाय (Blue Bull)सांभर हिरण (Sambar Deer) की संख्या हजारों में है |
घड़ियाल और भारतीय पाइथन जैसी सरीसृप प्रजातियाँ भी केन नदी में पाई जाती हैं। ब्लॉसम-हेडेड पैराकीट, हॉक-ईगल जैसे अनेक पक्षी पक्षियों की प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं |
वन संरक्षण और विस्तार
योजना से सरकार को भरोसा है कि ग्रेटर पन्ना योजना के तहत पन्ना टाइगर रिजर्व और आसपास के क्षेत्रों में बाघ आवास क्षेत्र में लगभग 22% की वृद्धि होगी । नौरादेही, दुर्गावती, और रानीपुर अभयारण्यों के बीच वन गलियारों का विकास होगा, जिससे वन्यजीवों का सुरक्षित आवागमन संभव होगा और मानव-वन्य जीव विवाद घटेगा। जल स्रोतों का संरक्षण भी किया जाएगा ताकि वन्य जीवों को आवश्यक जल प्राप्त हो सके।योजना में लगभग 47,000 वर्ग किलोमीटर (4.7 लाख हेक्टेयर) क्षेत्र वन्यजीव संरक्षण में शामिल है, जिसमें नए वन बनाए जाएंगे और वनीकरण किया जाएगा। यह वन विस्तार कार्यक्रम बुंदेलखंड के प्रमुख जिलों जैसे पन्ना, सतना, टीकमगढ़, छतरपुर, दमोह, सागर, रीवा, कटनी, बांदा, चित्रकूट और ललितपुर में केंद्रित रहेगा।
यह योजना बुंदेलखंड के भविष्य के लिए एक नए युग की शुरुआत मानी जा रही है, जहां विकास और संरक्षण दोनों सामंजस्य से आगे बढ़ेंगे।हालंकि केन-बेतवा लिंक परियोजना बाघ और घड़ियाल जैसे संवेदनशील प्रजातियों के लिए जोखिम भरी है, लेकिन संरक्षण प्रयासों के जरिए इन खतरों को कम करने की योजना बनाई गई है। वन्यजीव आवासों की सुरक्षा, पुनर्वास केंद्र और गलियारों के विकास के माध्यम से इन नुकसान को संतुलित करने की कोशिश की जा रही है।वन्यजीव संरक्षण के लिए नौरादेही, दुर्गावती और रानीपुर अभयारण्यों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि बाघ और अन्य प्रजातियों के आवागमन में बाधा न आए। सारी योजना पर भारत वन्यजीव संस्थान ने परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव का गहन अध्ययन किया है, और ग्रेटर पन्ना लैंडस्केप के लिए एकीकृत प्रबंधन योजना बनाई है जिससे संभावित नुकसान को कम किया जा सके।

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