पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के मार्ग से भटकती भाजपा।
विद्यालयों में हमें सिखाया जाता था कि किसी महापुरुष का जन्मदिन केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि उनकी जीवनदृष्टि को आत्मसात करने का अवसर है। जैसे कभी कांग्रेस गांधी जी के सिद्धांतों को छोड़कर केवल उनके नाम और तस्वीरों तक सीमित हो गई और सत्ता से दूर हो गई, वैसे ही आज यह प्रश्न उठ रहा है कि भाजपा उपाध्याय जी के ‘सादगी और सेवा’ के आदर्श से तो नहीं भटक रही।
भाजपा के निर्माण में नानाजी देशमुख, कुशाभाऊ ठाकरे, अटल बिहारी वाजपेयी, आडवाणी और अनगिनत कार्यकर्ताओं की तपस्या थी। वे दीनदयाल जी के बताए सरल आचरण और सेवा भाव पर जीवित मिसाल थे। किंतु आज दिखता है कि कार्यकर्ता का जीवन पहले जैसी त्यागमय परंपरा से दूर होता जा रहा है। पद प्राप्ति वैभव, सुविधा और धनबल पर निर्भर दिखाई देने लगी है।
सत्ता के संसाधनों और भारी आयोजनों से भीड़ तो जुट सकती है, पर जनता का विश्वास नहीं। लालच दुधारी तलवार है—मतदाता यदि धन और प्रलोभन से वोट देता है तो वही आदत भविष्य में और गहरे संकट उत्पन्न कर सकती है।
आज जब देश भ्रष्टाचार, जातिवाद और परिवारवाद से जूझ रहा है और बाहर सीमापार चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब गांधी और दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन ही राह दिखा सकता है सादा जीवन, उच्च विचार।
उन परम वैचारिक साधक को जन्मशती पर शत्-शत् नमन।
— धीरेन्द्र कुमार नायक, अधिवक्ता
