डॉगी की अंतिम यात्रा: इंसानी रिश्तों से बड़ी भावनाओं की मिसाल।
खेमराज चौरसिया (आर टी आई कार्यकर्ता)
मध्य प्रदेश// छतरपुर जिले के राजनगर क्षेत्र के पिपट गांव की एक घटना सिर्फ एक पालतू डॉगी "तिलकधारी" के अंतिम संस्कार की कहानी नहीं है, बल्कि यह इंसान और जानवर के रिश्तों में मौजूद गहराई और अपनत्व को उजागर करती है।
राम संजीवन पटेरिया उर्फ सद्दू महाराज ने जिस तरह 10 वर्षों तक पले डॉगी को परिवार का सदस्य माना और उसकी मृत्यु पर शोक जताते हुए पूर्ण रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार किया, वह इस बात की मिसाल है कि इंसानी भावनाएं प्रजातियों की सीमाओं से परे जाती हैं।जब जानवर रिश्तेदार बन जाता है गांव के लोग बताते हैं कि तिलकधारी कभी एक आवारा पिल्ला था, जिसे मालिक ने गोद लेकर जीवन दिया। धीरे-धीरे यह डॉगी घर का अभिन्न हिस्सा बन गया। उसने न केवल परिवार की चौखट की रक्षा की, बल्कि साथी की तरह हर सुख-दुख में मौजूद रहा।
इसलिए उसकी मृत्यु को महज "एक जानवर की मौत" कहना गलत होगा। वह परिवार में बेटे की तरह रहा और उसके बिछुड़ने का शोक वैसा ही गहरा है।
धारणा को चुनौती
हमारे समाज में अकसर जानवरों को इंसानों जैसा भाव नहीं मिलता। लेकिन तिलकधारी की अंतिम यात्रा से यह धारणा टूटी। "राम नाम सत्य है" के नारों से सजी यह यात्रा बताती है कि कभी-कभी पशु हमारे जीवन में उस जगह पर पहुंच जाते हैं, जहां उनकी विदाई भी उतनी ही पवित्र लगती है जितनी इंसान की।
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इस सोच का विस्तार है जीवन हर रूप में पूज्य है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि संवेदनाएं केवल इंसानों के लिए बंधी नहीं होतीं।पालतू जानवर हमें निस्वार्थ प्रेम और वफादारी सिखाते हैं।उनका रिश्ता बिना शर्तों के होता है।और उनके वियोग पर आंसू हमें साहसिक आत्ममंथन के लिए मजबूर करते हैं।सद्दू महाराज का यह कदम केवल एक ग्रामीण कथा नहीं, बल्कि आधुनिक समाज को आईना दिखाता है—जहां रिश्ते अक्सर स्वार्थ से बंधे हैं, वहां एक कुत्ते के साथ निभाई गई आत्मीयता असली इंसानियत का प्रमाण है।



