मध्य प्रदेश जहां कानून हुआ बेबस।
रवीन्द्र व्यास
छतरपुर // -भारत जैसे महान देश में संविधान और कानून सब के लिए समान है। पर यहाँ कुछ महान लोगों के द्वार पर क़ानून भी सलाम ठोककर लौट आता है। छतरपुर के राजनगर में 2023 चुनाव के दौरान ‘राजनीतिक रफ्तार’ इतनी तेज निकली कि कांग्रेस विधायक के ड्राइवर की जान ही ले गई , लेकिन उसी रफ्तार से पुलिस, प्रशासन और जांच कभी चल नहीं पाईं ।मामला है छतरपुर जिले के राजनगर सीट का। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विधायक के ड्राइवर सलमान खान की गाड़ी से कुचलकर हत्या हो गई थी। एफआईआर हुई, आरोप लगे, धारा 302, 307 समेत आधा दर्जन धाराओं का केस लगाया गया। लेकिन आरोपी कौन? जी हाँ, वही जो बाद में चुनाव जीतकर विधायक बन गए भाजपा के अरविंद पटेरिया।
राजनगर की जनता ने न्याय और अपराध का फ़ैसला चुनावी ईवीएम से किया, आरोपी कहे गए भाजपा प्रत्याशी अरविंद पटेरिया सीधे विधायक की कुर्सी पर जा पहुंचे। उधर सलमान की विधवा रजिया अली तमाम सरकारी दफ्तरों, दरबारों, सोन चिड़िया अभ्यारण जैसी हीरण सी भागती रहीं, पर न तो गिरफ्तारी हुई न ही न्याय की उम्मीद दिखी। आखिरकार, हारकर "न्यायालय" की चौखट पर आईं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, अब तक गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? सवाल है ऐसा, जिसका उत्तर खोजने के लिए गोमुख से संसद तक पैदल यात्रा करनी पड़े।
असल में यह घटनाक्रम 17 नवम्बर 2023 की रात से शुरू हुआ, रात में सलमान खान की हत्या वाहन से कुचल कर हो गई।18 नवम्बर को धरना, नारेबाजी, ज्ञापन दिए गए। 19 नवम्बर को जवाबी एफआईआर, एक-एक कर कई दिग्गज अभियुक्त बन गए । तीन दिसंबर को वही आरोपी चुनाव जीत गया, अब संविधान की शपथ! फिर शुरू हुआ जांच का खेल गाड़ियां जब्त, फोरेंसिक जांच, कागज-कागज, पत्राचार। फाइलों में जो आरोपी था अब उसी कुर्सी पर बैठा, जिस पर थाना प्रभारी की शिकायत धुँधली हो जाती हैं। सत्ता का कवच जांच का ढाल बन गया |
इतिहास गवाह है,जिसे सरकार सुरक्षा दे देती है, उसे कानून छू भी नहीं पाता। सुप्रीम कोर्ट नोटिस देता है, पुलिस स्टेटस रिपोर्ट बनाती है, आरोपी माननीय बनकर शपथ लेता है। पीड़ित परिवार नालायक़ समझौतावादी ठहरा दिया जाता है और जनहित में साधारण जनता को सलाह दी जाती है,आपका मामला पुलिस देख रही है |
संविधान और न्याय
मध्यप्रदेश में चुनाव नतीजे लोकतंत्र का उत्सव हैं, पर राजनगर हत्याकांड लोकतंत्र के इस मुखौटे की पहली दरार है जिसमें पीड़ित की झोली खाली और आरोपित की जैकेट वीआईपी होती है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि डेढ़ साल में गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? इसका जवाब विपक्ष के पास लोकतंत्र संकट में है, और प्रशासन के पास जांच चल रही है, से आगे कभी जाएगा भी नहीं।
जिस देश में विधायक शब्द ही सबसे बड़ा बेल बांड हो, वहाँ न्याय की आस रखना मासूमियत है। सलमान की मौत अगर वोटों से नहीं रुकी, तो समझ लीजिए कि भविष्य में कानून-सम्मानित अपराधी और अपराध ग्रस्त नागरिक दोनों बराबरी से चुनाव लड़ पाएंगे! यह पूरा मामला बताता है जांच भी कभी-कभी लोकतंत्र की तरह प्रतीकात्मक होती है। हर चुनावी जीत के बाद, लोकतंत्र का विजय-गीत गाया जाता है सत्ता की रफ्तार, कानून पर भारी! हमारे लोकतंत्र में चुनाव जीतना शायद सबसे बड़ा ‘क्लीन चिट’ है। सुरक्षा घेरा पाने के बाद गिरफ्तारी का डर तो वैसे ही खत्म हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट भी पूछ रही है “गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई?” लेकिन जवाब में शायद वही आएगा—“माय लॉर्ड, चुनाव लड़ना भी तो बहुत बड़ा संघर्ष है, क्या इसे सजा से कम माना जाए?”