पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में वोटरों की बाढ़
अभिषेक व्यास
पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में वोटरों की बाढ़ देखकर तो गणित के प्रोफेसर भी सोच में पड़ जाएं! कहीं कोई बांग्लादेशी वोटर नहीं छूट गया न? चुनाव आयोग का डेटा देखकर ऐसा लगता है, मानो बांग्लादेश और बंगाल के बीच ‘गेट टु गेथेरे’ चल रहा हो कब किसका नाम वोटर लिस्ट में चढ़ जाए, कहना मुश्किल है।
कल तक जहाँ एक गाँव में जितने लोग थे, अब वहाँ हर घर में वोटर कार्ड बनवा चुके कुत्ते-बिल्लियाँ भी हों, तो हैरानी मत कीजिए!
एसआईआर (SIR) प्रक्रिया
मतलब, जो वोटर सूची की सफाई करने चली थी, वही झाड़ू मारते-मारते वोटरों की संख्या ऐसी बढ़ा गई, जैसे हर मकान में बोगनविलिया उगाया जा रहा हो।
नेता जी कह रहे हैं, “सीमा
गाँवों की पूरी डेमोग्राफी बदल गई!” अरे भाई, अब यहाँ ऐसे गाँव भी होंगे, जिनका नाम ‘नया बांग्लादेश’ रखा जा सकता है।
चुनावी चिकित्सा
भाजपा तो हर बढ़े वोटर पर ‘आईएसआई मार्क’ ढूंढ रही है—कि
कौन असली, कौन बांग्लादेशी! वहीं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी)
कह रही है, “भैया, लोकतंत्र की ताकत है—जितना ज्यादा, उतना अच्छा”।
आंकड़ों को देखकर वोटरों को शक हो रहा है कि
कहीं अगली बार किसी के नाम से ‘बांग्लादेशी शर्मा प्रसाद’
या ‘नूरुल इस्लाम इंडिया’ न छप जाए!
वेरिफिकेशन की प्रैक्टिस
3.5 करोड़ वोटरों की जांच बाकी है, तीन महीने में इतनी चेहरा-मुकदमा तो CID वाले भी
नहीं देख पाते! वोटर कार्ड ही शायद अब आधार कार्ड से बड़ा पहचान पत्र बन जाएगा।
लगता है अगली जनगणना में गिनती होगी—पश्चिम बंगाल की जनता: 7.6 करोड़, वोटर: 8.5 करोड़!
मतलब, बंगाल की वोटर सूची अब मजाक नहीं, पूरे देश के लिए मनोरंजन बनती जा रही है—कहाँ इतना ‘डेमोक्रेटिक बूम’, और कहाँ बाकी राज्यों को समझ ही नहीं आ रहा कि वोटर बने कैसे!