जिन्दा माँ को कागजो में मौत दे दी बेटों ने।
पटवारी ने भीं मृत बता दिया, तहसीलदार ने फोती आदेश पारित कर दिया और जमीन बेटों के नाम
मोहन सरकार या सत्ता सौंप दी नौकरशाहो को, जो अपनी करतूत और कारनामो से बदनामी का लेप लगा रहे
बीजेपी के पूर्वज आरआरएस से जुड़े पंडित दीनदयाल उपाध्याय का वह दर्शन तो मट मैला सा हो गया है जिनके वचन में अंतिम छोर पर खडे व्यक्ति के जीवन को रोशन करने का संकल्प था। व्यक्ति को तो बाद में उजाला मिलेगा पर ज़ब भोपाल से अंतिम छोर के छतरपुर जिले में तो लगता है कि पूरी सत्ता ही नौकरशाह चला रहे है। कलयुग में अनेको माफिया है जो नौकरशाहो पर हावी है। तो क्या नौकरशाह और माफिया का तंत्र प्रदेश का रथ खींच रहा? यह इसलिए कि न्याय की उम्मीद किस से करोगे ज़ब मनमर्जी के सैलाब में नियम कायदे क़ानून खुद न्याय पाने के मोहताज हो जाये।
छतरपुर जिले के ईशानगर तहसील क्षेत्र के ग्राम कटारे के पुरवा का एक ऐसा मामला आया है जो धतराष्ट्र युग दर्शता है। इस गांव की गौरीबाई अहिरवार को उसके बेटों, पटवारी, तहसीलदार ने कागजो में मौत दे दी। जबकि वह वृद्धा पेंशन और राशन ले रही है। महिला को कागजी मौत देने में उसके बेटे और हल्का पटवारी के साथ ईशानगर तहसीलदार भीं शामिल है। यह विशुद्ध रूप से अपराधिक दायरे का मामला है। जिसमे बेटों और पटवारी ने एक वृद्ध महिला के साथ धोखाधडी की है। साथ में ईशानगर के तहसीलदार भीं शामिल है जिन्होंने मृत्यु प्रमाणपत्र के बिना ही फोती नामांतरण का आदेश जारी कर दिया। चूंकि राजधानी भोपाल से दूरस्थ छतरपुर जिले में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की सोच, मंशा वाले वचन कुचल गये इसलिए इस जिले में सब कुछ वह संभव है जो मध्यप्रदेश को अजब गजब बनाते हुए सुर्खियों में रहता है। अब आरोप लगते है कि सरकार ने भीं छतरपुर जिले को ठेके पर सौंप दिया है। ठेकेदारो की मर्जी अनुसार जिले के कागजी विकास जारी है। अपराध बेकाबू, सरकारी जमीनों और तालाबों पर तंत्र आशीर्वाद से कब्जे करो, नदियों की रेत निकाल अस्मिता लूट लो, पहाड़ो को खोद तलहटी से पंहुचा दो, बस यही है बेकाबू हालात। धतराष्ट्र और दूसरी तरफ कौरव सेना। अब तो कोई कृष्ण भीं नहीं है जो द्रोपदी की लाज बचा दे और महाभारत में कृष्ण को सारथी बना दे। चूंकि यह वह कलयुग है जहाँ जिम्मेदार ही खलनायक की भूमिका में नजर आ रहे है। तभी पूरा गिरोह मिलकर बूढी गौरीबाई को कागजो में मौत दे देता है और बेटे जमीन के हक़दार...✍️(धीरज चतुर्वेदी, बुंदेलखंड)