शहीद पत्रकार गौरी लंकेश के हत्यारो को आठ साल तक दंड नहीं मिलना शुभ संकेत नहीं!
(05 सितंबर गोरी लंकेश की पुण्य तिथि पर विशेष)
आज 05 सितंबर को सारे देश ने बड़े हर्षोल्लास के साथ शिक्षक दिवस मनाया ।लेकिन यह यह तिथि शिक्षक दिवस के अलावा पत्रकारिता जगत के लिए एक काले अध्याय की याद दिलाता है।
डॉक्टर सैयद खालिद कैस एडवोकेट
लेखक, समीक्षक, आलोचक, पत्रकार
आज सारा देश निष्पक्ष पत्रकारिता पर हो रहे हमलों से चिरपरिचत है। अमृत काल के आगमन के बाद पत्रकारिता पर बढ़ते हमलों ने यह साबित कर दिया है कि इस काल में आलोचनात्मक टिप्पणी करना किसी अपराध से कम नहीं है। आप लोग शायद भूल गए होंगे जब धर्म विशेष और दक्षिण पंथी विचारधारा के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणी के कारण देश की दबंग महिला पत्रकार को अपनी जान गंवाना पड़ी थी। लेकिन दुर्भाग्य की बात है आज आठ साल बाद भी मामला न्यायालय में विचाराधीन है और सभी आरोपी धड़ल्ले से खुले आसमान में जमानत लाभ लेकर घूम रहे हैं वहीं देश में दर्जनों ऐसे पत्रकार जेल में सड़ रहे हैं जिनके मामले की सुनवाई तक आरम्भ नहीं हुई जमानत तो दूर की बात है।
साथियों ,मैं जिस महिला पत्रकार की बात कर रहा था वह किसी परिचय की मोहताज नहीं थी ,लेकिन अपनी तीखी लेखनी के कारण दुष्ट लोगों के हाथों शहीद हो गई।जी हां वह कोई और नहीं अमर शहीद महिला पत्रकार गौरी लंकेश थी। गौरी लंकेश एक वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता थीं जिनकी 5 सितंबर 2017 को बेंगलुरु में हत्या कर दी गई थी। वह कन्नड़ भाषा की साप्ताहिक पत्रिका "गौरी लंकेश पत्रिका" की संपादक थीं और अपने निडर और बेबाक लेखन के लिए जानी जाती थीं। गौरी लंकेश ने अपने पिता पी. लंकेश के नक्शेकदम पर चलते हुए पत्रकारिता को अपना पेशा बनाया था।उन्होंने अपने लेखन और सक्रियता के माध्यम से सामाजिक अन्याय और मीडिया की स्वतंत्रता के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। गौरी लंकेश हिंदुत्व और दक्षिणपंथी राजनीति की मुखर आलोचक थीं और उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से इन मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया।
गौरी लंकेश की हत्या 5 सितंबर 2017 को बेंगलुरु के राजराजेश्वरी नगर में उनके घर के बाहर हुई थी। उस दिन वे अपने घर लौटकर दरवाजा खोल रही थीं, जब हमलावरों ने उनके सीने पर दो और सिर पर एक गोली मारी, जिससे उनकी तत्काल मौत हो गई। गौरी लंकेश की हत्या के पीछे का कारण उनके विचारधारात्मक लेखन और हिंदुत्ववादी संगठनों के प्रति उनकी आलोचना को माना जाता है। उनके आखिरी संपादकीय में दक्षिण पंथी संगठनों और संघ के खिलाफ लिखा गया था, जो चर्चा में आया था।गौरी लंकेश की हत्या के पीछे दक्षिण पंथी संगठनों का हाथ माना जाता है, जो उनके लेखन और विचारों से असहमत थे।
गौरी लंकेश हत्याकांड में शामिल आरोपियों को अभी तक सजा नहीं मिली है, बल्कि उन्हें जमानत मिल गई है ।बेंगलुरु सेशन कोर्ट ने 9 अक्टूबर 2024 को आठ आरोपियों को जमानत दी, जिनमें परशुराम वाघमोरे और मनोहर यादव भी शामिल हैं। इन आरोपियों का हिंदू संगठनों ने भव्य स्वागत किया, जिस पर विवाद खड़ा हो गया है।
पुलिस अभियोजन के अनुसार गौरी लंकेश हत्याकांड में शामिल अमोल काले, हत्याकांड का मास्टरमाइंड था, जो एक इंजीनियर से कट्टर कार्यकर्ता बन गया था। और वह वर्तमान में जमानत पर बाहर है। इस सूची में दूसरा नाम परशुराम वाघमोरे का आता है जो शूटर था, जिसने गौरी लंकेश को गोली मारी थी। उसे भी जमानत मिल गई है और उसका विशेष विचारधारा समर्थक समूहों द्वारा स्वागत भी किया गया था। आरोपी गणेश मिस्किन वह ड्राइवर है, जिसने हत्याकांड में इस्तेमाल होने वाले वाहन की व्यवस्था की थी। मनोहर यादव,राजेश डी बंगेरा,वासुदेव सूर्यवंशी,रुशिकेश देवडेकर,अमिथ रामचंद्र बद्दी,मोहन नायक एन यह सब जमानत पर बाहर हैं।गौरतलब हो कि इस हत्याकांड के वर्तमान में, सभी 17 आरोपी जमानत पर बाहर हैं, जबकि एक आरोपी विकास पाटिल अभी भी फरार है और पुलिस द्वारा 2017से आज तक उसको गिरफ्तार नहीं किया गया है।
0 5 सितंबर 2017 को बेंगलुरु में हत्या गौरी लंकेश के आज आठ साल ग़ुज़र जाने के बावजूद उनकी हत्या के मामले का निराकरण नहीं होने को पुलिस की विवेचना ओर गवाहों की अरुचि को जिम्मेदार ठहराने से अधिक एक खास विचारधारा का राजनीतिक दवाब है जो आज तक आरोपियों को दंड नहीं मिला और वह आराम से जमानत लेकर घूम रहे हैं और एक आरोपी 2017से अब तक पुलिस की गिरफ्त से दूर है।यह कोई अनियमितता नहीं वरन् सोची समझी साजिश है। गौरी लंकेश कोई पहला मामला नहीं देश में मारे गए किसी भी पत्रकार के हत्यारे को सजा नहीं मिलना शासन प्रशासन और राजनीतिक दवाब का परिणाम है जो चिंतनीय है।
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स पंजीकृत परिवार क्रांतिवीर अमर शहीद महिला पत्रकार गौरी लंकेश की आठवीं पुण्यतिथि पर अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।

