बुंदेलखंड की डायरी
सागर: रावण और राजनीति
रावण का पुतला हुआ राख , राजनीतिक अहंकार की आग बरक़रार
रवीन्द्र व्यास
बुंदेलखंड के सागर की दशहरा रात हमेशा की तरह रोशनी और जयघोष से भरी थी, लेकिन इस बार शहर की हवा में कुछ अलग बेचैनी थी। मैदान में रावण का पुतला जलने से ठीक पहले, नगर निगम की राजनीति ने खुद एक नया रावण गढ़ लिया था अहंकार, गुटबाजी और प्रोटोकॉल की राजनीति का रावण।
कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र पर नगर निगम की महापौर संगीता तिवारी का नाम पांचवें नंबर पर छप गया। पहली नज़र में यह मात्र एक त्रुटि थी, पर सागर की राजनीति जानने वालों के लिए यह संकेत था , गुटों में बंटी बीजेपी का एक और अध्याय खुल रहा था। महापौर ने तुरंत ऐलान किया कि जहाँ उनका अपमान होगा, वहाँ वे नहीं जाएँगी। उन्होंने साफ कहा कि यह केवल नाम नीचे रखने की बात नहीं, महिला प्रतिनिधि एवं सागर की प्रथम नागरिक की गरिमा का प्रश्न है।
इस कार्ड विवाद ने जैसे पुराने घावों को फिर से
हरा कर दिया। सागर के नगर निगम में महीनों से मेयर और अधिकारियों के बीच खींचतान
चल रही थी। महापौर का आरोप था कि निगम आयुक्त राजकुमार खत्री उनकी उपेक्षा करते
हैं मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में उनसे स्वागत नहीं
कराया गया, कन्यादान योजना में उन्हें मंच पर बुलाने में देर
की गई, और अब दशहरा आयोजन में नाम नीचे डाल दिया गया।
खत्री ने हमेशा की तरह जवाब दिया त्रुटि थी, सुधार ली गई। लेकिन सच यही था कि सागर की राजनीति में यह त्रुटि नहीं, प्रवृत्ति बन चुकी थी।
सागर में बीजेपी की राजनीति पिछले कुछ वर्षों से आंतरिक खींचतान का मैदान बनी हुई है। महापौर संगीता तिवारी भूपेंद्र सिंह गुट से आती हैं, जबकि विधायक शैलेंद्र जैन और जिलाध्यक्ष श्याम तिवारी दूसरे गुट से। निगम का प्रशासनिक ढांचा इनके बीच रस्साकशी का अखाड़ा बन चुका है।
जहाँ मेयर इसे एक महिला जनप्रतिनिधि के खिलाफ साजिश मानती हैं, वहीं दूसरा पक्ष इसे प्रोटोकॉल की भूल बताकर टालता है।
दशहरे के दिन जब लोग प्रतीकात्मक रावण को आग दे रहे थे, तब नगर निगम में बैठी राजनीति अपने भीतर का रावण और भी बड़ा बना रही थी। शहर के बुद्धिजीवी इसे अंदरूनी दहन कह रहे थे।
कांग्रेस ने मौके का कोई अवसर नहीं छोड़ा। प्रवक्ता आशीष ज्योतिषी ने तंज करते हुए कहा, कार्यक्रम नगर निगम का है, लेकिन कार्ड पर बीजेपी जिलाध्यक्ष का नाम पहले कैसे आया? लगता है नगर निगम अब बीजेपी का मंडल कार्यालय बन गया है।शहर कांग्रेस अध्यक्ष महेश जाटव ने महापौर को सुझाव दिया कि यदि सम्मान नहीं मिल रहा तो उन्हें किसी अन्य दल में जाने या स्वतंत्र प्रतिनिधि के रूप में काम करने पर विचार करना चाहिए।
इस बीच जैसीनगर से भी राजनीति की एक और चिंगारी उठी। मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह का नाम लिए बगैर उन पर सार्वजनिक रूप से हस्तक्षेप के आरोप लगाए। उन्होंने तंज कसा, भैया अपने घर की चिंता करो, हमारे जैसीनगर पर मत बोलो।
इस सार्वजनिक ठिठोली ने साफ कर दिया कि मध्यप्रदेश के इस राजनीतिक क्षेत्र में हर कोई खुद को राम कहता है, लेकिन अपने भीतर के रावण को जलाने की हिम्मत किसी में नहीं।
नजर बाग पैलेस की मौन पीड़ा
राजनीतिक धुएं से दूर, सागर के बीचो बीच खड़ा है नजर बाग पैलेस एक वीरान, टूटी दीवारों वाला ऐतिहासिक महल, जिसके पत्थर आज भी चुपचाप इतिहास का भार ढो रहे हैं। 2 दिसंबर 1933 का वह दिन जब महात्मा गांधी दमोह से सागर आए थे, यहीं नजर बाग पैलेस में रुके थे। जिस पल उन्होंने यह स्थान चुना, पैलेस सागर के गर्व का प्रतीक बन गया। दीवारों पर बने भित्ति चित्र, झिलमिलाते कांच वाली खिड़कियां और सजीव गलियारों ने उस दौर में आज़ादी की खुशबू महसूस की थी।
लेकिन अब वही दीवारें दीमक और अंधेरे के कब्जे में हैं। जो खिड़कियां कभी रोशनी का स्वागत करती थीं, अब वहां से धूल झाँकती है। अफसरों की देखरेख खत्म होते ही पैलेस मानो भुला दिया गया। स्मार्ट सिटी मिशन ने सोचा कि सामने एक पार्क बना देने से इतिहास के घाव भर जाएँगे। कुछ समय लोग वहाँ आए, फोटो खिंचवाए, फिर सब शांत हो गया। आज पार्क की लाइट टूटी हैं, बाउंड्री ध्वस्त है और फव्वारे निष्क्रिय।
पैलेस अब खुद से पूछता है क्या मैं गांधीजी की उपस्थिति की स्मृति के रूप में याद किया जाऊँगा, या केवल एक खंडहर के रूप में गूगल मैप पर तलाशा जाऊँगा? यह सवाल केवल एक इमारत का नहीं, बल्कि उस सोच का है जो विकास की भीड़ में धरोहरों की आत्मा भूल जाती है।
देवरी का बापू मंदिर
इसी सागर जिले की देवरी नगर की एक गली में सुबह के साथ गूंजती है आवाज “रघुपति राघव राजा राम…”
लगभग एक सदी पुराना बापू मंदिर, जो कभी स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा गांधीजी की स्मृति में बनाया गया था, अब इस शहर की जीवित आत्मा बना है। वर्षों की उपेक्षा में मंदिर टूट चुका था, मूर्ति खंडित थी, और दीवारों से गिरती प्लास्टर की परतें सवाल पूछ रही थीं।
2012 में राजू दीक्षित ने इस मंदिर को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने अपने जीवन की सारी आरामदायक संभावनाएँ छोड़ दीं— परिवार, नौकरी, निजी सुख — सब कुछ भुलाकर कहा, जब तक मैं हूँ, यह मंदिर और गांधीजी की याद जिंदा रहेगी। वे रोज़ सवेरे गांव से निकलकर मंदिर तक आते हैं, सफाई करते हैं, दीपक जलाते हैं और गांधीजी के नाम का कीर्तन करते हैं। आसपास के बच्चे प्रभात फेरी निकालते हैं, और हर 2 अक्टूबर को यह पुराना मंदिर सजीव हो उठता है जैसे इतिहास ने फिर से साँस ली हो।
राजू दीक्षित का यह समर्पण बताता है कि भले राजनीति गांधी को मंच पर रखकर भाषण देते रहे, पर उनके विचार आज भी कुछ आम लोगों के जीवन में साँस ले रहे हैं।
सागर का द्वंद्व
आज का सागर दो चेहरों वाला शहर है। एक तरफ नगर निगम में गुटबाजी और प्रोटोकॉल की राजनीति है, जहाँ कार्ड में नाम ऊपर-नीचे होने पर भी आहत अहंकार सिर उठाता है। दूसरी तरफ बापू मंदिर की वह शांति है, जहाँ कोई व्यक्ति बिना पद और प्रचार के सिर्फ मानवीय मूल्यों को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहा है।
नजर बाग पैलेस की टूटी दीवारें सत्ता की उपेक्षा का प्रतीक हैं, और बापू का मंदिर नागरिक स्नेह का चिन्ह। दोनों के बीच में खड़ा सागर शहर एक नैतिक सवाल पूछता है जब बाहर का रावण हर साल जलता है, तो भीतर के रावण कब जलेंगे?
दशहरे की रात रावण का पुतला राख बन गया, लेकिन राजनीतिक अहंकार की आग नहीं बुझी।
अब ऐसी ही राज कथा छतरपुर जिला में देखने को मिली जहां बीजेपी के पूर्व विधायक पुष्पेंद्र नाथ पाठक ने पूर्व प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा को जन्मदिन की व्यंग्यात्मक शुभकामना दी। उन्होंने अपने फेसबुक वॉल पर लिखा है कि
जन्मदिन की शुभकामनाएं मान्यवर!
सच्ची मुस्कान वाली ये आखिरी तस्वीरें हैं आपके साथ श्रीमान विष्णु जी..
प्रदेशाध्यक्ष की घोषणा होने के बाद, खजुराहो से भोपाल जाने के लिए आपका नौगांव होकर निकलना हुआ... तब यह उल्लास और उमंग से स्वागत हुआ था, इसमें आपके निश्छल भाव और हम लोगों की खुशियां बही जा रही थीं..
हालांकि इसके बाद भी अपनी खूब मुलाकातें हुईं, मगर उनमें ये निश्छल मुस्कान नहीं उभर पाई..
क्योंकि..
हर मुलाकात में हमने छतरपुर जिले के संगठन की समस्याओं से आपको अवगत कराया और मात्र एक समाधान भी सुझाया...
लेकिन..
जैसे भारतीय इतिहास में, सनकी सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने चमड़े के सिक्के चलवा कर अपने को दर्ज किया...
वैसे ही अपने सुल्तान बनने पर यहां छतरपुर में चमड़े के सिक्के चलवा कर, आपने अपना नाम अमर कर लिया...
हालांकि इस पर, आपकी तरफ से, अपना 1to1 विचार विमर्श लंबित है..कोई 3 वर्षों से..
उम्मीद है अगले जन्मदिन के पूर्व हम आप त्रुटियों को ठीक करने की सहमति बनाने में सफल होंगे..
आपके सुखी, स्वस्थ, समृद्ध और यश-कीर्ति पूर्ण जीवन के लिए अनेकानेक शुभकामनाएं..हार्दिक बधाई...
बिन तुगलक बना कर बधाई देने का ये अंदाज सियासत में ही देखने को मिलता है।अगर इसी अंदाज के साथ उनके अध्यक्ष कार्यकाल में बधाई देने का साहस करते तो बात कुछ और होती।

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